रविवार, 13 सितंबर 2015

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                   अविवेक: परमापदम पदम्

आदनस्य ------------------------------------------------------

लेन, देन और करने योग्य काम को जल्दी न करने पर, समय उसके आनंद को पपी जाता है |( नष्ट कर देता है )

सहसा विदधित ----------------------------------------------------------

अचानक कोई काम नहीं करना चाहिए | अविवेक बड़ी विपत्तियों का स्थान है | गुणों पर आकर्षित होने वाली सम्पत्तियाँ विवेकी को स्वयं चुन लेती हैं |

पाथेयं

१- पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं - जल, अन्न और सुन्दर वचन | वास्तव में वे मूर्ख होते हैं जो पत्थरों को रत्न का नाम देते हैं |

२- यदि सत्संग में लगे रहोगे तो रहोगे,(बेहतर बनोंगे ) यदि दुर्जन के साथ गिरोगे तो गिरोगे |

३- जाती हुई चींटी सैकड़ों कोश तक चली जाती है | न जाता हुआ गरुड़ एक कदम भी नहीं जा सकता है |

४- शोक धैर्य नष्ट करता  है | शोक ज्ञान नष्ट करता  है | शोक सब कुछ नष्ट करता  है | शोक के समान कोई शत्रु नहीं है |

५- गौरव दान से मिलता है धन संग्रह से नहीं | जल देने वाले बादल की स्थिति ऊपर होती है | जल धारण करने वाले समुद्र की स्थिति नीची होती है |

६- सज्जनों द्वारा हँसी में कही गई बात भी पत्थर पर लिखे अक्षर के समान होती है | असज्जनों द्वारा कसम खा कर कही गई बात भी जल पर लिखे गए अक्षर की तरह होती है |

७- फल के आ जाने पर पेड़ झुक जाते हैं|  नए जल से युक्त होने पर बादल झुक जाते हैं|   समृद्धि आने पर सज्जन लोग झुक जाते हैं|  यहीं परोपकार करने वालों का स्वभाव होता है |

८- मथने से लकड़ी में से भी आग उत्पन्न हो जाती है | खोदने पर धरती भी जल देती है | उत्साही के लिए कुछ भी असंभव नहीं है| कार्य के आरंभ होने पर किए गए सारे प्रयास फलित होते हैं |

९- हम यहाँ वल्कल वस्त्रों में संतुष्ट रहते हैं तुम रेशमी वस्त्रों में | दोनों ही परिस्थितियों में  संतुष्टि का स्तर समान है वास्तव में वहीँ दरिद्र होता है जिसकी इच्छाएँ बड़ी होती हैं | मन से संतुष्ट होने पर धनी और गरीब में भेद नहीं रहता है |  
१०-ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है| शौर्य का आभूषण वाणी संयम है| ज्ञान का आभूषण शांति है | कुल का आभूषण विनम्रता है | धन का आभूषण उचित व्यक्ति पर खर्च है | तप का आभूषण क्रोध न करना है | बलवान का आभूषण क्षमा करना है | धर्म का आभूषण कपट न करना है | शील (सदाचार ) सभी का  सर्व श्रेष्ठ आभूषण है |


स्वस्थ वृत्तं
 
बताए गए स्वस्थ के नियमों का जो ठीक तरह से पालन करता है वह मनुष्य रोग रहित होकर सौ सालों तक जीवित रहता है |

भ्रातृ  स्नेह: दुर्लभः

१- यहाँ महान यशस्वी राम लक्ष्मण और सीता सत्य शील और भक्ति की साक्षात् मूर्ति रूप में विद्यमान हैं |

२- कोई निर्दयी, उपकार को न मानाने वाला, सामान्य ,प्रेमी और भक्त आया है | वह यहाँ रुके या चला जाए ?

३- यह आपका प्रिय भाई भरत, जो भाइयों का प्रेमी है |  जिसमें आपका रूप उसी प्रकार प्रतिबिंबित हो रहा है जैसे दर्पण में प्रतिबिंबित होता है|

४- आज मुझे समझ में आ रहा है कि मेरे पिता जी ने बहुत कठिन काम किया था | जब भाई का प्रेम ऐसा है तो पिता का प्रेम कैसा होगा?

५- तुषार की बूंदों से भरे हुए कमल के पत्ते के समान नेत्रों वाली, प्रसन्नता के आँसू बहती हुई , मन में पुत्र का भाव रखकर सीता स्वयं भरत के सम्मान के लिए जाएँ|

६- जब तक आपके प्रतिज्ञा का समापन नहीं हो जाता तब तक मैं आपके चरणों में रहूँगा |

७- अपने पैरों में पहनी गई ये खडाऊं सिर झुकाकर प्रणाम करने के लिए मुझे दें |
  जब तक आप कार्य की सफलता हेतु नहीं रहेंगे तब तक मैं इन दोनों के सहारे रहूँगा |

८- मैंने बहुत दिनों में जितना यश पाया है उतना यश भरत ने थोड़े समय में ही आज प्राप्त कर लिया है

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