अविवेक: परमापदम पदम्
आदनस्य
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लेन, देन और करने
योग्य काम को जल्दी न करने पर, समय उसके आनंद को पपी जाता है |( नष्ट कर देता है )
सहसा विदधित
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अचानक कोई काम नहीं
करना चाहिए | अविवेक बड़ी विपत्तियों का स्थान है | गुणों पर आकर्षित होने वाली सम्पत्तियाँ विवेकी
को स्वयं चुन लेती हैं |
पाथेयं
१- पृथ्वी पर तीन ही
रत्न हैं - जल, अन्न और सुन्दर वचन | वास्तव में वे मूर्ख होते हैं जो पत्थरों को
रत्न का नाम देते हैं |
२- यदि सत्संग में
लगे रहोगे तो रहोगे,(बेहतर बनोंगे ) यदि दुर्जन के साथ गिरोगे तो गिरोगे |
३- जाती हुई चींटी
सैकड़ों कोश तक चली जाती है | न जाता हुआ गरुड़ एक कदम भी नहीं जा सकता है |
४- शोक धैर्य नष्ट
करता है | शोक ज्ञान नष्ट करता है | शोक सब कुछ नष्ट करता है | शोक के समान कोई शत्रु नहीं है |
५- गौरव दान से
मिलता है धन संग्रह से नहीं | जल देने वाले बादल की स्थिति ऊपर होती है | जल धारण
करने वाले समुद्र की स्थिति नीची होती है |
६- सज्जनों द्वारा
हँसी में कही गई बात भी पत्थर पर लिखे अक्षर के समान होती है | असज्जनों द्वारा
कसम खा कर कही गई बात भी जल पर लिखे गए अक्षर की तरह होती है |
७- फल के आ जाने पर
पेड़ झुक जाते हैं| नए जल से युक्त होने पर
बादल झुक जाते हैं| समृद्धि आने पर सज्जन लोग झुक जाते हैं| यहीं परोपकार करने वालों का स्वभाव होता है |
८- मथने से लकड़ी में
से भी आग उत्पन्न हो जाती है | खोदने पर धरती भी जल देती है | उत्साही के लिए कुछ
भी असंभव नहीं है| कार्य के आरंभ होने पर किए गए सारे प्रयास फलित होते हैं |
९- हम यहाँ वल्कल
वस्त्रों में संतुष्ट रहते हैं तुम रेशमी वस्त्रों में | दोनों ही परिस्थितियों में संतुष्टि का स्तर समान है वास्तव में वहीँ
दरिद्र होता है जिसकी इच्छाएँ बड़ी होती हैं | मन से संतुष्ट होने पर धनी और गरीब
में भेद नहीं रहता है |
१०-ऐश्वर्य का आभूषण
सज्जनता है| शौर्य का आभूषण वाणी संयम है| ज्ञान का आभूषण शांति है | कुल का आभूषण
विनम्रता है | धन का आभूषण उचित व्यक्ति पर खर्च है | तप का आभूषण क्रोध न करना है
| बलवान का आभूषण क्षमा करना है | धर्म का आभूषण कपट न करना है | शील (सदाचार ) सभी
का सर्व श्रेष्ठ आभूषण है |
स्वस्थ
वृत्तं
बताए गए स्वस्थ के
नियमों का जो ठीक तरह से पालन करता है वह मनुष्य रोग रहित होकर सौ सालों तक जीवित
रहता है |
भ्रातृ स्नेह: दुर्लभः
१- यहाँ महान यशस्वी
राम लक्ष्मण और सीता सत्य शील और भक्ति की साक्षात् मूर्ति रूप में विद्यमान हैं |
२- कोई निर्दयी,
उपकार को न मानाने वाला, सामान्य ,प्रेमी और भक्त आया है | वह यहाँ रुके या चला
जाए ?
३- यह आपका प्रिय
भाई भरत, जो भाइयों का प्रेमी है | जिसमें
आपका रूप उसी प्रकार प्रतिबिंबित हो रहा है जैसे दर्पण में प्रतिबिंबित होता है|
४- आज मुझे समझ में
आ रहा है कि मेरे पिता जी ने बहुत कठिन काम किया था | जब भाई का प्रेम ऐसा है तो
पिता का प्रेम कैसा होगा?
५- तुषार की बूंदों से
भरे हुए कमल के पत्ते के समान नेत्रों वाली, प्रसन्नता के आँसू बहती हुई , मन में
पुत्र का भाव रखकर सीता स्वयं भरत के सम्मान के लिए जाएँ|
६- जब तक आपके
प्रतिज्ञा का समापन नहीं हो जाता तब तक मैं आपके चरणों में रहूँगा |
७- अपने पैरों में
पहनी गई ये खडाऊं सिर झुकाकर प्रणाम करने के लिए मुझे दें |
जब तक आप कार्य की सफलता हेतु नहीं रहेंगे तब
तक मैं इन दोनों के सहारे रहूँगा |
८- मैंने बहुत दिनों में जितना यश पाया है उतना यश भरत ने थोड़े समय में ही आज प्राप्त कर लिया है
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