किसी गरीब आदमी ने खूब परिश्रम करके धन कमाया| उस धन से अपने पुत्र को एक महाविद्यालय में प्रवेश दिलाने में सफल हो गया | उसका पुत्र वही छात्रावास में निवास करते हुए पढ़ाई में जुट गया | एक बार पिता बेटे की बीमारी को सुनकर व्याकुल हो गया और पुत्र को देखने के लिए चल पड़ा परंतु धन की कमी से दुखी वह बस छोड़कर पैदल ही चल पड़ा । पैदल चलते हुए शाम के समय में भी वह अपने गंतव्य से दूर ही था । रात के फैले अंधेरे में निर्जन स्थान पर पदयात्रा उत्तम नहीं होती है ऐसा सोच कर वह पास में स्थित गाँँव में रात में रहने के लिए किसी गृहस्थ के पास गया । दयालु गृहस्वामी ने उसे आश्रय दे दिया। भाग्य की गति बड़ी अनोखी होती है । उसी रात उस घर में कोई चोर घर के अंदर घुस गया । वहांँ रखी एक संदूक को लेकर भागा । चोर के पैरों की आवाज से जागा अतिथि चोर की शंका से उसके पीछे भागा और पकड़ लिया, परंतु अनोखी घटना घटी चोर ने ही जोर से चिल्लाना शुरु कर दिया । यह चोर है। यह चोर है । उसकी ऊँँची आवाज से जागे गांँव के निवासी अपने घर से निकलकर वहांँ आ गए और बेचारे अतिथि को ही चोर मानकर निंदा करने लगे । जबकि गाँँव का सिपाही ही चोर था । उसी क्षण ही रक्षक ने उस अतिथि को यह चोर है ऐसा मानकर जेल में डाल दिया । अगले दिन वह सिपाही चोरी के आरोप में उसको न्यायालय ले गया । न्यायधीश बंकिम चंद्र ने दोनों से अलग-अलग विवरण सुना। सारा विवरण जानकर उन्होंने उसे निर्दोष माना और सिपाही को दोषी । परंतु प्रमाण के अभाव में निर्णय नहीं कर सके । उसके बाद उन दोनों को उन्होंने अगले दिन उपस्थित होने का आदेश दिया । दूसरे दिन उन दोनों ने न्यायालय में अपने - अपने पक्ष को पुनः रखा। तभी वहाँँ के ही किसी कर्मचारी ने आकर निवेदन किया कि यहांँ से 2 कोस की दूरी पर कोई व्यक्ति किसी के द्वारा मार डाला गया है । उसकी लाश राजमार्ग के पास पड़ी है । आदेश देंं कि क्या करना चाहिए।न्याय धीश ने सिपाही और कैदी को उस लाश को न्यायालय में लाने का आदेश दिया।आज्ञा पाकर दोनों चल पड़े । वहांँ पहुंँचकर के लकड़ी के तख्त पर रखे कपड़े से ढके शरीर को कंधे पर उठाए हुए न्यायालय की ओर चल पड़े ।सिपाही मजबूत शरीर वाला था और अभियुक्त कमजोर शरीर वाला था। भारी शव को कंधे से उठाना उसकी लिए बहुत कठिन था । वह बोझ के कष्ट से रो रहा था ।उसका रोना सुनकर प्रसन्न सिपाही उससे बोला -अरे दुष्ट उस दिन तूने मुझे चोरी की गई संदूक को लेने से रोका था । अब अपने किए का फल भोग। इस चोरी के अभियोग में तू 3 वर्ष का जेल का दंड पाएगा। ऐसा कहकर जोर से हंँसने लगा । जैसे- तैसे दोनों ने लाश को लाकर एक चबूतरे पर रख दिया । न्यायाधीश ने फिर उन दोनों को घटना के विषय में बोलने के लिए आदेश दिया । सिपाही के द्वारा अपने पक्ष रखने पर आश्चर्यजनक घटना घटी वह मुर्दा कंबल को हटाकर न्यायधीश को प्रणाम करके बोला - महोदय सिपाही ने रास्ते में जो कहा था उसको कह रहा हूँ । तुम्हारे द्वारा मुझे चोरी की मंजूषा को लेने से रोका गया था इसलिए अपने किए हुए कर्म का फल भोग । चोरी के अभियोग में तुम 3 वर्ष की जेल का दंड पाओगे । न्यायाधीश ने सिपाही को जेल की दंड का आदेश देकर उस व्यक्ति को सम्मान के साथ छोड़ दिया । इसलिए कहा जाता है - बुद्ध की संपत्ति से युक्त लोग नीति और युक्ति का सहारा लेकर कठिन कामों को भी खेल खेल में ही आसान कर देते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें