बुधवार, 6 नवंबर 2019

Chapter meaning of janani tulya vatsala

कोई किसान दो बैलों से खेत जोत रहा था उन दो बैलों में एक शरीर से दुर्बल और तेजी से चलने में असमर्थ था अतः किसान उस दुबले बैल को कष्ट देकर जबरदस्ती धकेल रहा था। वह  हल उठाकर चलने में असमर्थ होने के कारण खेत में गिर पड़ा । क्रोधित किसान ने उसको उठाने के लिए बहुत बार कोशिश की।  तो भी बैल नहीं उठा।

भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सब गायों की माता सुरभि की आँखों में आँसू आने लगे । सुरभि कि इस दशा को देखकर इंद्र ने उससे पूछा - अरे शुभा! इस प्रकार क्यों रो रही हो ? और वह -

हे इंद्र! तुम्हारा कोई विनाश दिखाई नहीं दे रहा। मैं तो पुत्र का दुख करती हूँ। हे इंद्र ! इसी से रोती हूँ।

हे इंद्र!  पुत्र की दिनता को देख कर मैं रो रही हूँ।वह लाचार है यह जानता हुआ भी किसान उसे बार- बार पीड़ा देता है। वह कठिनाई से भार उठाता है । दूसरे की तरह वह धुरी को उठाने में समर्थ नहीं है । यह आप देख रहे हैं न ? ऐसा उत्तर दिया ।
हे कल्याणि ! निश्चित ही हजारों अधिक पुत्रों के रहने पर भी तुम्हारा ऐसा प्रेम इसी में क्यों है ?ऐसा इन्द्र के द्वारा पूछे जाने पर सुरभि बोली -यदि मेरे हजारों संताने हैं, सभी सभी जगह मुझे प्रिय हैं । हे कि इंद्र पीड़ित  पुत्र को  देखकर उस पर अधिक कृपा होती है।

यह सच है कि मेरी बहुत सी संतानें हैं तो भी मैं इस पुत्र में अपने विशेष दर्द को अनुभव करती हूँ क्योंकि यह दूसरों से निर्बल है । सभी संतानों में मां समान प्रेम वाली  ही होती है तो भी  कमजोर पुत्र में मां की अधिक कृपा स्वाभाविक ही  है सुरभि के वचन को सुनकर बहुत हैरान देवराज इंद्र का भी ह्रदय पिघल गया और उन्होंने उसे इस तरह सांत्वना दी - पुत्री जाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा । शीघ्र ही तेज हवाओं और बादलों की गर्जना के साथ  वर्षा होने लगी । देखते ही देखते सब जगह जल से भर गया । किसान अधिक प्रससन्नता से खेत जोतन से भी विमुख होकर बैलों को लेकर घर आ गया ।

सभी बच्चों में माता समान प्रेम भाव रखने वाली होती है । परंतु पुत्र के कमज़ोर होने पर वही माता उस पुत्र के प्रति कृपा से सहानुभूति वाली हो जाती है

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