शनिवार, 30 नवंबर 2019

Aadhyatm katha 20

तुमने जरूर यह कहानी सुनी होगी कि एक आदमी निकलता था समुद्र के किनारे से। उसे एक बोतल पड़ी हुई मिल गई। जिज्ञासावश उसने बोतल खोली--तुमने भी खोली होती--क्या है बोतल के भीतर? बड़ा धुआं उठा और एक प्रेत प्रकट हुआ। और उस प्रेत ने कहा कि तू धन्यभागी है, क्योंकि मैं कोई साधारण प्रेत नहीं हूं, मैं प्रेतों का सम्राट हूं। मैं सजा भुगत रहा था और उस दिन की प्रतीक्षा थी कि कोई मुझे मुक्त कर दे। तूने मुझे मुक्त किया। तू जो भी कहेगा वह मैं करूंगा। बस मेरी शर्त एक है कि मुझे चौबीस घंटे काम चाहिए। मैं एक क्षण खाली नहीं बैठ सकता।
वह आदमी तो बहुत खुश हुआ। उसने कहा, इससे अच्छा और क्या होगा! आओ, बहुत काम हैं मेरे पास। एक क्षण खाली क्यों बैठोगे? बहुत वासनाएं हैं, बहुत इच्छाएं हैं मेरी, उनको पूरी करने में लगो।
जाते ही आज्ञा दी, बनाओ महल! इधर उसने कहा उधर प्रेत ने महल बना दिया। प्रेत फिर खड़ा था सामने। थोड़ा आदमी घबड़ाया कि अगर इतनी जल्दी चीजें हुईं तो जल्दी ही चुक जाएंगी। लाओ धन, हीरे-जवाहरात, सोना-चांदी! इधर वह कहे उधर प्रेत पूरा करे। दोपहर होते-होते वे जो अनंत वासनाएं मालूम होती थीं, वे खत्म हो गईं। और प्रेत ने कहा कि याद रखना, मैं खाली बैठ ही नहीं सकता। काम बताओ। अगर काम नहीं बताया तो गर्दन दबा दूंगा।
भागा वह आदमी एक फकीर के पास, क्योंकि उसी फकीर के पास सदा गया था--जब भी कोई उलझन होती थी सुलझाने के लिए। उस फकीर ने कहा, यह सीढ़ी रखी है, यह तू ले जा। इस सीढ़ी को लगा दे और उससे कह--पहले ऊपर चढ़ो, फिर नीचे उतरो; फिर ऊपर चढ़ो, फिर नीचे उतरो। उस आदमी ने कहा, मुझे न सूझी यह बात! इतनी सरल तरकीब--चढ़ाते रहो, उतारते रहो। मरने दो उसको, चढ़ने दो, उतरने दो; जब उतर जाए तो कहो चढ़ो। कहना बार-बार आज्ञा देने की जरूरत भी नहीं है; एक दफे दे दी आज्ञा: उतरो-चढ़ो, उतरो-चढ़ो।
उस आदमी ने कहा कि महाराज, एक सवाल सिर्फ मन में उठता है कि क्या आपका कभी ऐसे भूत से पाला पड़ा? आपने एकदम से उत्तर दे दिया!

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