1- आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला
सबसे बड़ा दुश्मन है। परिश्रम के समान कोई
मित्र नहीं है , जिसको करके (मनुष्य) दुखी
नहीं होता है।
2- गुणवान व्यक्ति गुण ( के महत्व ) को जानता
है । गुणहीन गुण ( के महत्व ) नहीं जानता ।
बलवान व्यक्ति बल को जानता है, निर्बल
बल को नहीं जानता । कोयल वसंत ऋतु के
गुण को कोयल जानती है कौवा नहीं जानता
है। और हाथी शेर के बल को जानता है ,
चूहा नहीं जानता है ।
3- जो किसी कारण से अत्यधिक क्रोध करता
है, निश्चित रुप से वह उस कारण के समाप्त
होने पर प्रसन्न हो जाता है परंतु जिसका मन
बिना किसी कारण के द्वेष करता है। लोग
उसे कैसे संतुष्ट करेंगे ?
4- कहा हुआ अर्थ पशु के द्वारा भी ग्रहण कर
लिया जाता है । घोड़े और हाथी भी कहे जाने
पर ( भार ) वहन करते हैं । विद्वान बिना कहे
ही बात समझ लेता है क्योंकि बुद्धियाँ दूसरों
के संकेत से उत्पन्न ज्ञान रुपी फल वाली
होती है ।
5- निश्चय ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला क्रोध
शरीर को नष्ट करने के लिए उस का पहला शत्रु
है । जैसे लकड़ी में स्थित आग उसे जलाने का
कारण होती है, वैसे ही ( क्रोध रूपी ) वहीं
आग शरीर को भी जलाती है ।
6- हिरण हिरणों के साथ पीछे- पीछे चलते हैं।
गाय गायों के साथ, घोड़े घोड़े के साथ,मूर्ख
मूर्खों के साथ तथा बुद्धिमान बुद्धिमानों के
साथ ( जाते हैं ) । समान आचरण तथा
समान स्वभाव वालों में आपसी मित्रता हो
जाती है ।
7- फल तथा छाया से युक्त महान वृक्ष आश्रय
लेने योग्य होता है । यदि भाग्यवश उसमें फल
न हो तो भी छाया किसके द्वारा रोकी जा
सकती है।
8- मंत्रहीन कोई अक्षर नहीं होता है । औषधीय
गुणों से रहित कोई जड़ नहीं होती । कोई
व्यक्ति अयोग्य नहीं होता है। वहाँ (गुणों का)
संयोजक दुर्लभ होता है।
9- धनवान होने या धनहीन होने पर महान लोगों
में एकरुपता होती है। जैसे सूर्य उदय तथा
अस्त के समय लाल रंग का ही होता है।
10- वास्तव में इस विचित्र संसार में कुछ भी
निरर्थक नहीं है। यदि घोड़ा दौड़ने में वीर
(उपयोगी) है तो गधा भार ढोने में वीर
(उपयोगी) होता है।
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