यहाँ ( महानगरों में ) जीवन जीना दूभर हो गया है। अब तो प्रकृति हो एकमात्र शरण (सहारा) है
स्वच्छ पर्यावरण है।
महानगरों में दिन-रात चलता हुआ (समय रूपी) लोह का चक्र (पहिया) मन को सुखाते
हुए, शरीर को पीसते हुए सदा टेढ़ा घूम रहा है।
इसके भयानक दाँतों से मानव-विनाश न जाए। (इसलिए स्वच्छ पर्यावरण हेतु प्रकृति ही एकमात्र शरण है)
सैकड़ों मोटर गाडियाँ काजल के समान मलिन ( मैला/ काला) धुआँ छोड़ती रहती हैं।
रेलगाड़ियाँ कोलाहल करती हुई अथवा शोर मचाती हुई दौड़ती रहती हैं।
सर्वत्र वाहनों की अनन्त (अन्तहोन) पक्तियाँ हैं । अब चलना कठिन हो गया है।
(इसलिए स्वच्छ पर्यावरण हेतु प्रकृति ही एकमात्र शरण है)।
वायुमण्डल अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। पानी भी स्वच्छ नहीं रह गया है। खाद्य पदार्थों में बुरी (गन्दीं)
वस्तुओं को मिलावट हो रही है। धरातल (पृथ्वी-तल) गन्दगी से भरा पड़ा है। संसार में तो बाहरी और आन्तरिक
रूप से बहुत अधिक शुद्धिकरण किया जाना चाहिए।
(इसलिए स्वच्छ पर्यावरण हेतु प्रकृति ही एकमात्र शरण है)।
कवि कह रहा है कि मुझे कुछ समय के लिए इस नगर से दूर ले चलो, क्योंकि मैं गाँव की सीमा पर
(गिरते हुए) झरने को, (वहती) नदी को तथा जल से भरे हुए तालाब को देखना चाहता हूँ।
(मैं यह भी चाहता हूँ कि काश) एकान्त वन में क्षणभर के लिए भी मेरा भ्रमण (घूमना-फिरना) हो जाए।
(इसलिए स्वच्छ पर्यावरण हेतु प्रकृति ही एकमात्र शरण है)
कवि चाहता है कि उ सके आस-पास हरे-भरे वृक्षों की, हरी-भरी सुन्दर लताओं की मनोहर माला बनीं
हो तथा वह हवा द्वारा हिलाई जाती हुई फूलों की पंक्ति को चुन रहा हो। आम के वृक्ष से मिली हुई नवमालिका
(चमेली) का सुन्दर (मनोरम) संगम हो रहा हो।
(इसलिए स्वच्छ पर्यावरण हेतु प्रकृति ही एकमात्र शरण है)
अरे बन्धु! पक्षियों के समूह की ध्वनि से गुंजा यमान रहने वाले वनप्रदेश में चलो। नगर के शोर- गुल से व्याकुल लोगों के लिए तुम सुख का सन्देश धारण कर लो (उन्हें सुखी रहने का संदेश पहुँचाओ)। कहीं ऐसा न हो जाए कि चकाचौंध की दुनिया जी वन के रस का हरण कर ले
(इसलिए स्वच्छ पर्यावरण हेतु प्रकृति ही एकमात्र शरण है)
लताएँ , वृक्ष तथा झाड़ियाँ पत्थरों के नीचे कहीं पिस (कुचल) न जाएँ । प्रकृति में कहीं पथरीली सभ्यता
ही न समा जाए। मैं मानव के लिए (स्वस्थ एवं नीरोग) जीवन की
कामना करता हूँ, जीवित रहते हुए मौत (बीमारीग्रस्त जीवन) नहीं चाहता हूँ।
(इसलिए स्वच्छ पर्यावरण हेतु प्रकृति ही एकमात्र शरण है)
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