जैसी करनी वैसी भरनी
एक व्यक्ति का पूरा परिवार गुरुद्वारे जाकर गुरुदेवजी की महान सेवा किया करता था। उस परिवार में एक लड़का जो कि दोनों पैरों से अपाहिज था, वह भी वहाँ बैठे-बैठे बहुत सेवा किया करता था।
सेवा करते-करते बरसों बीत गए उसका परिवार यह सोचता था कि हम सब गुरुद्वारे जाकर इतनी महान सेवा रोज किया करते हैं, फिर हमारे परिवार में यह बच्चा ऐसे क्यों हुआ, इसका क्या दोष था।
एक दिन गुरु पूर्णिमा के दिन सत्संग चल रहा था। हजारों लाखों श्रद्धालुओं के बीच उस अपाहिज पुत्र के पिता ने गद्दी पर बैठे हुए गुरुदेव से एक प्रश्न किया जय गुरुदेव हम सब इतनी गुरुद्वारे में सेवा करते हैं कभी किसी के बारे में बुरा नहीं सोचते हैं न किसी का बुरा करते हैं फिर ऐसा क्या अपराध हुआ जो कि हमारा बच्चा अपाहिज पैदा हुआ ?
गुरुदेव ने बताया वैसे तो यह बात बता नहीं सकते थे, पर इस समय तूने हजारों, लाखों संगत के बीच में यह प्रश्न पूछा है, अब यदि मैंने तेरी बात का उत्तर नहीं दिया तो हजारो, लाखों संगत का विश्वास डामाडोल हो जाएगा।
इसलिए पूछता है तो सुन। यह जो बच्चा हैं जो दोनों टांगों से बेकार है, पिछले जन्म यह एक किसान का बेटा था। रोज खेत में अपने पिता को दोपहर में भोजन का टिफिन खेत में देने जाया करता था। एक दिन इसकी मां ने इसे दोपहर में 11:00 बजे खाना लगाकर दिया कि बेटा खाना खाकर पापा को टिफिन देकर आ। इसकी मां ने खाना परोसकर थाली में रखा कि इतने में इसके किसी दोस्त ने आवाज लगाई तो यह खाना वही छोड़ कर अपने दोस्त से बात करने बाहर चला गया। इतने में एक कुत्ता घर में घुस आया और उसने थाली में मुंह डाला और रोटी खाने लगा। लड़का जैसे ही घर में वापस आया और कुत्ते को थाली में मुँह डालता हुआ देखकर पास ही में एक लोहे का बड़ा-सा डण्डा पड़ा हुआ था इसने यह भी नहीं सोचा कि खाना तो झूठा हो चुका है बिना सोचे समझे उस कुत्ते की दोनों टांगों पर इतनी जोर से लोहे का डण्डा मारा कि वह कुत्ता अपनी जिंदगी जबतक जिंदा रहा दोनों पैरों से बेकार होकर घसीटते-घसीटते जिंदगी जिया और तड़प-तड़पकर मर गया। यह उसी कुत्ते की बद्दुआ का फल है जो इस जन्म में यह दोनों टांगों से अपाहिज पैदा हुआ है।
पुत्र इस संसार में मनुष्य को अपने-अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है इस जन्म में अगर किसी की टांग तोड़ी है तो स्वाभाविक है कि अगले जन्म में अपनी टांग टूटना है।
इसलिए जो भी कर्म करो सोच समझकर करो और अच्छे कर्म करो कभी किसी का दिल न दुखाओ हमेशा सत्कर्म करो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें