मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

Adhyatma katha -9

यूनान में ऐसा हुआ, एक ज्योतिषी रात आकाश के तारों का अध्ययन करता हुआ चला जा रहा था, एक कुएं में गिर पड़ा। पाट नहीं थी कुएं पर। आंखें आकाश में अटकी थीं। चांद—तारों का अध्ययन हो रहा था। कुएं में गिर पड़ा तो चिल्लाया। पास के ही झोपड़े से एक गरीब बुढ़िया ने उसे बामुश्किल निकाला। वह यूनान का सबसे बड़ा ज्योतिषी था। सम्राट भी उसके द्वार पर आते थे।
उसने बुढ़िया का बहुत—बहुत धन्यवाद किया और कहा कि देख, तुझे पता नहीं कि तुझे सौभाग्य से किसको बचाने का अवसर मिला है! मैं यूनान का सबसे बड़ा ज्योतिषी हूं। तारों, नक्षत्रों, उनकी गतिविधियों, मनुष्य के भाग्य से उनके संबंध में मुझसे बड़ा कोई जानकार पृथ्वी पर नहीं है। बड़े से बड़े सम्राट: मेरे पास आते हैं। मेरी फीस भी बहुत ज्यादा है। लेकिन तूने मुझे बचाया है तो तेरा भाग्य मैं बिना फीस के देख दूंगा, तू कल आ जाना।
वह बुढ़िया हंसने लगी। उस ज्योतिषी ने कहा : तू हंसती क्यों है? उसने कहा. मैं इसलिए हंसती हूं कि जिसे अपने सामने का कुआं नहीं दिखाई पड़ता, उसे चांद—तारों की गतिविधि, नक्षत्र और भविष्य...। तुझे अपने पैर सम्हलते नहीं हैं, तू मेरा भविष्य बतायेगा? होश में आ!
और कहते हैं यह घटना उस ज्योतिषी के जीवन में क्रांति का कारण बन गयी। उसने ज्योतिष छोड़ दी। यह चोट भारी थी! यह बात भी इतनी सच थी! सामने पैर के कुआं है, नहीं दिखाई पड़ा! मगर उसे क्यों कुआं नहीं दिखाई पड़ा था? नहीं कि उसके पास आंख नहीं थी; आंख थी, मगर आंख दूर के तारों पर अटकी थी!
यही आदर्शवादी की भ्रांति है, उसकी आंख दूर के तारों पर अटकी है। आदर्शवादी कहता है मोक्ष पायेंगे! अभी यह सड़ा—गला क्रोध, इससे छुटकारा नहीं हो रहा है। यह सड़ा—गला काम, इससे छुटकारा नहीं हो रहा है। मोक्ष पायेंगे! बैकुंठ जायेंगे! निर्वाण होगा! आंखें बड़े दूर के आकाश पर लगी हैं। और उसकी वजह से रोज—रोज गड्डों में गिर रहे हो। गड्डे—क्रोध के, काम के, वैमनस्य के, ईर्ष्या के, घृणा के! मैं तुमसे कहता हूं : आंखें लौटा लाओ जमीन पर। जहां चलना है वहीं आंखें होनी चाहिए। इस क्षण में ही आंखें होनी चाहिए, क्योंकि गड्डे यहां हैं। और सारे गड्डों से तुम बच जाओ, तो उसी बचाव का नाम मोक्ष है। मोक्ष कहीं दूर आकाश में नहीं है। जिसके जीवन में गिरने की संभावना न रही, वही मुक्त है।

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