| भक्तिमार्ग में मुख्य बाधा ||💐
* भक्तिमार्ग में मुख्य बाधा है - कपट , छल , कुटिलता , चालाकी , विश्वासघात , छिपाव , दम्भ , पाखण्ड |
काम , क्रोध आदि दोष उतने बाधक नहीं हैं , जितने कपट आदि बाधक हैं | कारण कि काम , क्रोध आदि में तो साधक उनके परवश हो जाता है , पर कपट आदि स्वतंत्रता से करता है | साधक सच्चे हृदय से काम , क्रोधादि दोषों को दूर करना चाहता है , पर न चाहते हुऐ भी वे आ जाते हैं ; परन्तु छल , कपट आदि को तो जान- बूझकर करता है | इसलिये भगवान ने कहा है-
निर्मल मन जन सो मोहि पावा | मोहि कपट छल छिद्र न भावा || ( मानस सुन्दर. ४४/३ )
पुरूष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोई |
सर्व भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोई || ( मानस उत्तर. ८७ क )
* भगवान को कपट , छल आदि नहीं सुहाते , जबकि अन्य दोषों की तरफ वे देखते ही नहीं -
रहति न प्रभु चित चूक किए की | करत सुरति सय बार हिए की || ( मानस बाल. २९/३ )
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ | दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ || ( मानस उत्तर. १/३ )
* इसलिये सन्तों के स्वभाव में आया है - " सरल सुभाव न मन कुटिलाई " ( मानस उत्तर. ४६/१)
सन्तवाणी में भी कपट- त्याग की बात विशेष रूप से आयी है ; जैसे-
* कपट गाँठ मन में नहीं , सबसों सरल सुभाव |
नारायण वा भक्त की लगी किनारे नाव ||
* तुलसी सीतानाथ ते मत कर कपट सनेह |
क्या परदा भर्तार सों जिन्ह देखी सब देह ||
* जग चतुराई छोडकर , होय मूढ भज राम ||
* हम काम क्रोधादि दोषों को दूर करना चाहते हैं , फिर भी वे अपने से दूर नहीं होते तो यह निर्वलता ( कमजोरी ) है | परन्तु कपट आदि करना कमजोरी नहीं है , प्रत्युत अपने को सबल मानकर किया गया अपराध है |
जो निर्बल है उस पर प्राय: हरेक को दया आती है , पर जो कपटी है उस पर क्रोध आता है |
* इसलिये भगवान निर्बलों के हैं , कपटियों के नहीं -
" सुने री मैंने निरबल के बल राम "
" अशक्तानां हरिर्बलम् " ( ब्रह्मवैवर्त. गण. ३५/९६ )
* अत: यदि हम प्रभु का निर्मल प्रेम चाहते है तो हमें हृदय से निर्मल व छल कपट रहित होना चाहिये |
श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज
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